क्या शहरों के दम पर अंबाला में अपनी सल्तनत बचा पाएगी भाजपा !

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धर्मपाल वर्मा

दक्ष दर्पण समाचार सेवा

चण्डीगढ़ :10 साल से प्रदेश में और देश में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी हरियाणामें मौजूदा चुनाव के आरंभिक दौर में थोड़ी विचलित दिखाई दे रही है। अंबाला सुरक्षित सीट की ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि चुनाव में कांग्रेस की मजबूती की आवाज आ रही है। बीजेपी का दलित वोट उससे गैप बनाता नजर आ रहा है। शहरों में उसकी स्थिति कुछ ठीक है लेकिन देहात में मामला गड़बड़ा जाने की रिपोर्ट है। इसके बावजूद समर्थकों के अनुसार भाजपा के पास अब भी कई ऐसी चीज हैं जो कांग्रेस के पास नहीं है ।भाजपा की अब दो नई चिंताएं हैं। एक कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन दूसरा देहात में पार्टी के प्रति नाराजगी बढ़ना। ऐसा अंबाला में भीे देखा जा रहा है।‌ सूत्र बताते हैं कि भाजपा के लोग तीन चीजों का सहारा लेकर चल रहे हैं जो उनकी नजर में पार्टी को परास्त होने से बचा सकती हैं । एक है मोदी दूसरा बूथ लेवल तक का वर्कर और मजबूत संगठन और तीसरा है डैमेज कंट्रोल करने वाले पार्टी के नेता। भारतीय जनता पार्टी के लोग माहौल बनाना जानते हैं और माहौल बनाना ही राजनीति है। कहते हैं कि पार्टी के नेता पहले अपनी कमजोरी ढूंढते हैं फिर उस कमजोरी का उपचार करते हैं और अंत में जीत हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं ।लेकिन अभी तक अंबाला में भाजपा की चिंताएं कायम है इसका एक कारण यह भी है कि कांग्रेस के उम्मीदवार के मुकाबले में उनकी महिला उम्मीदवार कमजोर मानी जा रही है। पार्टी के नेता यमुनानगर हल्के को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि भाजपा को अब भी सबसे ज्यादा लीड यमुनानगर से मिलेगी लीड मिलने के आसार पंचकूला और अंबाला में भी हैं परंतु देहात के पहले से कमजोर होने की खबरें उनकी चिंताएं बढ़ा रही हैं। पार्टी के नेता सारी कमजोरी को पता करके अब डैमेज कंट्रोल पर लगना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि जो चीजें उनके चुनौती बनी हुई है उन में एक यह भी है कि अलग-अलग हलको में पार्टी के ही कुछ नेता या सहयोगी एक्टिव नहीं है ,खुश भी नहीं है। उनकी इस कमजोरी का फायदा कांग्रेस उठा सकती है। ऐसे नेता अंबाला शहर में भी हैं कैंट में भी हैं पंचकूला में भी है। इन्हें मुख्य धारा में कैसे लाया जाए भाजपा के नेताओं के लिए यह एक टास्क हो सकता है। पार्टी ने अब इस बात को जरूरी समझ लिया है कि अंबाला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम होना लाजमी है। बताया जा रहा है कि भाजपा के कई नेता इस बात को स्वीकार करके चल रहे हैं कि मौजूदा चुनाव में पार्टी को देहात की विधानसभा क्षेत्रों कालका, नारायणगढ़, सढ़ौरा, मुलाना और जगाधरी में दिक्कत पेश आ सकती है। लेकिन यमुनानगर पंचकूला अंबाला शहर अंबाला कैंट में उसे अब भी लीड मिल सकती है ।लेकिन यह लीड इतनी कम नहीं होनी चाहिए की देहात की लीड भारी पड़ जाए। पार्टी के नेताओं को पता है कि कौन-कौन से हलकों में कौन-कौन नेता क्यों नाराज हैं। फिलहाल पार्टी के सहयोगी माने जाने वाले कुछ नेता भी घर बैठे हैं और उनके समर्थक कांग्रेस की मदद तक कर सकते हैं। कहते हैं कि जब तीर नजदीक से चलता है तो वह आर पार जाता है यदि भाजपा के लोग ही यह कहने लग जाए कि कांग्रेस जीतेगी तो फिर यह भी कहा जा सकता है कि, दे दाल में पानी।इसका दुष्प्रभाव दूसरे न्यूट्रल और फ्लोटिंग वोटर्स पर भी पड़ सकता है। इस संदर्भ में बैठकें किए जाने की खबरें है। बताया जा रहा है कि कुछ नेताओं को विधायकों से शिकायत है कुछ को सरकार से कुछ को मौजूदा मुख्यमंत्री से कुछ को पूर्व मुख्यमंत्री से। पार्टी के नेता यह जरूर मानकर चल रहे हैं कि जैसे भी हो नाराज नेताओं को मना लिया जाना चाहिए। यदि केंद्र में फिर से भाजपा की सरकार‌ बनने के आसार होते हैं तो और बात है वरना कुछ और। अपनों को मनाने का यह काम समय रहते पूरा हो पाएगा या नहीं यह वक्त बताएगा। पार्टी के नेता पंचकूला में एक समुदाय विशेष के लोगों के मतदान के प्रति लापरवाह रुझान से भी चिंतित हैं ।लेकिन उम्मीदवार को लेकर उनके पास कोई चारा नहीं है। अब इसका न कोई विकल्प है ना उपचार। समझा जाता है कि सिरसा में सिटिंग एमपी सुनीता दुग्गल की टिकट कटना भाजपा की बन्तो कटारिया के काम आ गया ।सच्चाई यह है कि पार्टी में ही लोग उन्हें कमजोर उम्मीदवार के रूप में देख रहे हैं ।खास तौर पर कांग्रेस उम्मीदवार के मुकाबले।
भाजपा के नेता यह देख रहे हैं कि कांग्रेस में फूट बरकरार है क्योंकि उम्मीदवार को कुछ जगह गुटों के आधार पर समानांतर कार्यकर्ता बैठक आयोजित करनी पड़ रही है। कांग्रेस का मीडिया प्रबंधन भी कारगर नहीं बताया गया है। ऐसा लगता है कि भाजपा अंबाला में डैमेज कंट्रोल को लेकर अपने काम पर निकल रही है। अंबाला क्षेत्र के कुछ लोग यह महसूस कर रहे हैं कि क्षेत्रीय दलों के जो उम्मीदवार आए हैं वह भाजपा की जगह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले हैं परंतु कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से बड़ी सपोर्ट मिल रही है। मामला कांटे का और रोचक बनता जा रहा है। यदि भाजपा डैमेज कंट्रोल करने में सफल रही तो यही मुकाबला और भी ज्यादा रोचक हो जाएगा।
हरियाणा के संदर्भ में अंबाला का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण इसलिए है कि न केवल अंबाला मौजूदा मुख्यमंत्री नायाब सैनी का गृह जिला है बल्कि उनका गृह विधानसभा क्षेत्र नारायणगढ़ भी इसी क्षेत्र में आता है। उम्मीदवार बन्तो कटारिया तो मंच से यह कहना नहीं भूलती कि उन्हें तो मुख्यमंत्री नायब सैनी की कृपा से टिकट मिला है।

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