धर्मपाल वर्मा
दक्ष दर्पण समाचार सेवा
अपनी कुर्सी बचाने के लिए जेजेपी को आराम से अहमियत देते आ रहे हैं मनोहर लाल।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं ,हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा के नेता चुनाव के मोड में नजर आने लगे हैं । इस दौर में कई ऐसे सियासी सवाल खड़े हो रहे हैं जो बहुत ही इंटरेस्टिंग होने वाले हैं। एक यह कि भारतीय जनता पार्टी की हरियाणा इकाई जननायक जनता पार्टी को दरकिनार करके अकेले दम पर चुनाव लड़ने की कोशिश करती दिख रही है ।क्या उसे इसके लिए हाईकमान से स्वीकृति मिल पाएगी या फिर यह मामला फिर एक बार टाय टाय फिस्स हो जाएगा। दूसरा यह कि प्रदेश के जो भाजपा नेता अभी तक किसी न किसी कारण से बैकफुट पर नजर आ रहे थे और अब आक्रामक नजर आने लगे हैं क्या वह मर्जी की जगह से चुनाव लड़ने की कोशिश में कामयाब हो पाएंगे या चुनाव जीत पाएंगे।
अब देखने वाली बात यह है कि जेजेपी को साथ रखने में रुचि लेते दिख रहे मुख्यमंत्री मनोहर लाल अपनी पार्टी के बागी असंतुष्ट और राजनीतिक सिंडिकेट बनाकर चल रहे नेताओं से किस तरह से निकलेंगे, यह यक्ष प्रश्न है ।
अभी उन्हें राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी बिरेंदर सिंह, कैप्टन अभिमन्यु और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ से सियासी दृष्टिकोण से ही निपटना होगा। रामविलास शर्मा की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी,
सबसे अहम सवाल जो अब चर्चा में आएगा वह है तीन नगर निगमों के चुनाव और उनमें भी गुड़गांव और मानेसर में जीत हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल राव इंद्रजीत सिंह के साथ किस तरह का तालमेल बना कर चलेंगे । इसमें कोई संदेह नहीं कि इस समय राव इंद्रजीत सिंह अपना सारा ध्यान गुरुग्राम नगर परिषद के चुनाव पर लगा रहे हैं। वे एक बार फिर अपना नगर निगम बनाना चाहते हैं । 8 लाख से ज्यादा मतदाता और 40 वार्ड वाले गुरुग्राम नगर निगम में इस समय एक स्थिति लगभग स्पष्ट है वह यह कि भारतीय जनता पार्टी यहां 10 -11 वार्ड में जीत हासिल करने की ही स्थिति में दिखाई दे रही है ।दूसरा यह कि यहां मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और उसकी प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस में न होकर भाजपा का भाजपा में होता नजर आएगा। ऐसा लग रहा है कि यहां एक तरफ भाजपा के उम्मीदवार मैदान में होंगे तो दूसरी तरफ वे उम्मीदवार होंगे जिनके सिर पर राव इंद्रजीत सिंह का हाथ होगा। पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था यह पुनरावृति अब भी होती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री कहो या पार्टी, दोनों यह कोशिश करेंगे कि टिकटों में अपनी चलाएं राव इंद्रजीत सिंह के पसंद के उम्मीदवारों को टिकट न दें। फिर राव इंदरजीत सिंह उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार दें। गुरुग्राम नगर निगम के पिछले चुनाव में गुरु ग्राम वासियों को पता है कि किस तरह टिकटें बटी थी। कैसे नाराजगी और गतिरोध देखने को मिला था। एक तरफ भाजपा के उम्मीदवार थे दूसरी तरफ राव इंदरजीत सिंह के। वार्ड नंबर 13 14 और 15 में मुख्यमंत्री की पसंद के उम्मीदवारों के मुकाबले राव इंद्रजीत सिंह ने भी उम्मीदवार उतार रखे थी ।मुख्यमंत्री ने इन 3 वार्डों में खुद जाकर भी प्रचार किया परंतु अंत में जीत राव इंद्रजीत सिंह के निर्दलीय उम्मीदवारों की हुई और सब जानते हैं कि पार्टी और सरकार के पूरे प्रयासों के बावजूद राव इंद्रजीत सिंह गुरु ग्राम नगर परिषद में अपनी मेयर बना ले गए थे और उसे भी निर्दलीय रूप में जीता कर लाए थे। कमोबेश यही स्थिति अब बन सकती है। ऐसे में यह संभव है कि आगे लोकसभा और फिर विधानसभा के चुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह से कुछ गल बात कर ले। उन्हें राव इंद्रजीत सिंह की कई बातें मानने को मजबूर भी होना पड़ सकता है। राव इंद्रजीत सिंह अकेले गुरुग्राम लोकसभा क्षेत्र ही नहीं भिवानी महेंद्रगढ़ और रोहतक लोकसभा क्षेत्र में भी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी जरूरत बनेंगे इसमें कोई दो राय नहीं है।
अब चर्चा करते हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज नेता चौधरी बिरेंदर सिंह की। भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद मंत्री बन जाने के बाद लोगों ने उन्हें ट्रेजडी किंग कहना बंद कर दिया था लेकिन एक बार फिर उन्हें ट्रेजडी किंग के रूप में देखा जाने है। चौधरी बिरेंद्र सिंह के मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मनोहर या मधुर संबंध नहीं रहे हैं । उनका पलड़ा मुख्यमंत्री के विरोधी माने जाने वाले और प्रतिद्वंदी की तरह समझे जाने वाले नेताओं राव इंदरजीत सिंह ओमप्रकाश धनखड़ रामविलास शर्मा डॉ अरविंद शर्मा आदि की ओर झुकता है। उपरोक्त सभी नेताओं की तरह चौधरी बिरेंदर सिंह भी जेजेपी और बीजेपी से गठबंधन के विरोधी हैं और अब चाहते हैं कि सत्ता में 9 साल पूरे करने जा रही भारतीय जनता पार्टी चुनाव में किसी तरह की बैसाखी की तलाश ना करें और अपने दम पर चुनाव लड़े। चौधरी बिरेंदर सिंह अक्टूबर में कोई बड़ी बात कह सकते हैं कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं लेकिन एक बात उनके सांसद पुत्र बृजेंद्र सिंह ने मीडिया के सामने 100 फ़ीसदी गारंटी के साथ यह कह दी है की गठबंधन रहे या नहीं ,उनका परिवार उचाना से पक्के तौर पर चुनाव लड़ेगा। यह बात उस समय कही गई जब मीडिया के सामने उनके साथ पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, राज्यसभा सांसद डीपी वत्स सहित भाजपा के कई नेता विद्यमान थे। चौधरी बिरेंदर सिंह सांसद बृजेंद्र सिंह और प्रेमलता ने तो हल्के में भी दुष्यंत चौटाला का विरोध करने का रास्ता पकड़ लिया है और एहसास करा दिया है कि वे विधानसभा का चुनाव जरूर लड़ेंगे। यहां यह संभव है कि चौधरी ओमप्रकाश चौटाला चौधरी बिरेंदर सिंह के परिवार के उम्मीदवार को किसी भी तरह से अपना समर्थन देने को तैयार हो जाएं। उनका मकसद दुष्यंत चौटाला को हराकर चौधरी बिरेंदर सिंह के परिवार के सदस्य को जितवान निश्चित तौर पर हो सकता है। ऐसा लगता है कि इस सवाल पर चौधरी बिरेंदर सिंह कोई भी फैसला ले सकते हैं।
अब चर्चा करते हैं प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की। उन्होंने 25 मार्च को हिसार के कार्यक्रम में साफ कर दिया कि अब भाजपा को अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी करनी चाहिए ।उन्होंने नारा दे दिया, तीसरी बार अपनी सरकार।
एक बात और है जिसे वे अभी कह नहीं रहे पर सोच रहे हैं ।वह यह कि वे इस बार बादली से चुनाव नहीं लड़ना चाहते। इसका मुख्य कारण यह है कि जाट बाहुल्य इस अलग तासीर के हल्के में उनकी दाल गलती नजर नहीं आ रही ।उनके समर्थक भी यह मानने को तैयार नहीं कि श्री धनखड़ बादली से चुनाव जीत जाएंगे और शायद यह श्री धनखड़ को भी लगने लगा है और वे यह चाहते हैं कि एक बार फिर अपना हल्का बदल लें और बादली की बजाए गुरुग्राम जिले के बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्र से लड़ लें। श्री धनखड़ ने अपना नया घर भी इसी विधानसभा क्षेत्र में बनाया है शायद इसलिए कि बादशाहपुर क्षेत्र के मतदाता उन्हें आउटसाइडर ना कहें परंतु बताते हैं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल उनकी इन योजनाओं से परिचित हैं । इससे भी बड़ी बात यह है कि बादशाहपुर में उनके दो चहेते लोग उम्मीदवार पहले से विद्यमान हैं ।एक पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह दूसरे उनके ओएसडी जवाहर यादव। यहां सिटिंग एमएलए सरकार का समर्थन करते आ रहे निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद को पहले की तरह फिर एक बार भारतीय जनता पार्टी की टिकट नहीं मांगनी चाहिए क्योंकि उन्हें मिलेगी नहीं। ओमप्रकाश धनखड़ और राव इंद्रजीत सिंह में परस्पर बहुत अच्छी अंडरस्टैंडिंग है ।बादशाहपुर में राव इंद्रजीत सिंह का खासा प्रभाव है ।ऐसे में श्री धनखड़ को यह लगता होगा कि जब वे बादशाहपुर से टिकट मांगेंगे तो राव इंद्रजीत सिंह इस क्षेत्र के सांसद होने के नाते उनका विरोध नहीं करेंगे और उन्हें टिकट मिल गई तो चुनाव में मदद भी करेंगे परंतु इस मामले में मुख्यमंत्री किस दृष्टिकोण से काम करेंगे यह वक्त बताएगा। इस खींचतान में रामविलास शर्मा भी धनखड़ के मददगार के रूप में नजर आ सकते हैं लेकिन यहां एक बात और नजर आ रही है कि शायद भारतीय जनता पार्टी इस बार (उम्र को देखते हुए) रामविलास शर्मा को महेंद्रगढ़ से चुनाव मैदान में ही ना उतारे। अहीरवाल में मुख्यमंत्री और पार्टी में उनके प्रतिद्वंदी कौन-कौन हैं यह सब जानते हैं । गुरुग्राम में भारतीय जनता पार्टी एक दो नहीं 5 गुटों में बंटी हुई है। इस गुटबाजी के कारण ही जिला परिषद के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ी और जननायक जनता पार्टी उस उम्मीदवार को जिला परिषद चेयरपर्सन बनाने में सफल रही जिसके सिर पर राव इंद्रजीत सिंह का भी हाथ था। भारतीय जनता पार्टी में जितने जाट नेता हैं उनको लेकर लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इन्हें बुरी तरह से दरकिनार कर दिया है। इनमें एक नाम और है और वह है पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का। भारी भरकम विभागों के मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु पिछला चुनाव हार गए परंतु इस बार वे फिर भाग्य आजमाएंगे। हल्का वही रहेगा नारनौंद । कैप्टन अभिमन्यु ने अब अपने लोगों के बीच में जाकर फिर समर्थन मांगना शुरू कर दिया है और वे समर्थन भी यह कहकर मांग रहे हैं कि मजबूत हो जाओ ,एकजुट हो जाओ, अब की बार मंत्री संत्री नहीं ,बड़ी लड़ाई लड़ेंगे।
शायद वे मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनकर चुनाव में उतरना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि यह फार्मूला काम कर सकता है लेकिन जाट भाजपा को वोट देंगे या नहीं यह वक्त बताएगा।
उधर ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री अपनी दो ताकतों के दम पर खुद को मजबूत मानकर चल रहे हैं एक यह कि उन पर अंत तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आशीर्वाद बना रहेगा और दूसरा यह कि प्रदेश के गैर जाट मतदाता उनका और भारतीय जनता पार्टी का निश्चित तौर पर साथ देंगे। बताते हैं कि लोकसभा के ही नहीं , विधानसभा के उम्मीदवारों का चयन करने में भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल निर्णायक स्थिति में रहेंगे। मुख्यमंत्री के नजदीकी लोग यह मानकर चल रहे हैं कि लोकसभा में भाजपा 10 में से 9 सीटों पर कंफर्टेबल स्थिति में है । मुकाबला है तो एक सीट पर है और वह भी भाजपा ही जीतेगी।