समलैंगिक विवाह भारतीय मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़- मौलाना सईदूर रहमान।भारत सरकार न्यायलय में इसके ख़िलाफ़ खड़ी रहे, पूरा देश उनके साथ- मौलाना

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दक्ष दर्पण समाचार सेवा

कैथल : हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायलय में समलैंगिक विवाह के ख़िलाफ़ चल रही बहस पर मौलाना मोहम्मद सईदूर रहमान, कैथल सदर जमियत उलेमा ऐ हिन्द ने कहा कि मुस्लिम समाज समलैंगिक विवाह के ख़िलाफ़ है। साथ ही मौलाना ने देश के प्रधान मंत्री व भारत सरकार का भी धन्यवाद किया जिन्होंने समलैंगिक विवाह के ख़िलाफ़ अपना पक्ष न्यायलय में रखा। मौलाना ने कहा की एक जैविक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह भारत में एक पवित्र मिलन और एक संस्कार है और समलैंगिक विवाह उस मानदंड के खिलाफ है। विवाह की पारंपरिक परिभाषा को बदलना भारतीय मूलभूत सिद्धांतों, विश्वासों और मूल्यों के खिलाफ होगा। समान लिंग विवाह की अनुमति देने से विरासत, कर और संपत्ति के अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर कानूनी समस्याएँ पैदा होंगी क्योंकि समान-लिंग विवाह को समायोजित करने के लिए सभी कानूनों और विनियमों को बदलना बहुत कठिन होगा। न्यायालय ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामले में अपने 2018 के फैसले में समलैंगिक व्यक्तियों के बीच यौन संबंधों को केवल अपराध की श्रेणी से बाहर किया था और इस आचरण को वैध नहीं ठहराया था। न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के मौलिक अधिकार के एक भाग के रूप में समान लिंग विवाह को स्वीकार नहीं किया। विवाह रीति-रिवाजों, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है। समान लिंग विवाह की तुलना एक ऐसे परिवार के रूप में रहने वाले पुरुष और महिला से नहीं की जा सकती, जिसके मिलन से बच्चे पैदा हुए हों। संसद ने देश में केवल पुरुष और महिला के मिलन को मान्यता देने के लिए विवाह कानूनों को डिजाइन और तैयार किया है। समलैंगिक व्यक्तियों के विवाह का पंजीकरण मौजूदा व्यक्तिगत और साथ ही संहिताबद्ध कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन होगा।

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