दक्ष दर्पण समाचार सेवा
चंडीगढ़, 22 मार्च- हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा बिजली उत्पादन के लिए पानी के गैर-खपत उपयोग के लिए जलविद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर (वॉटर सेस) लगाने के अध्यादेश का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह वॉटर सेस अवैध है और हरियाणा राज्य पर बाध्यकारी नहीं है, इसलिए इसे हिमाचल सरकार द्वारा तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।
हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन मुख्यमंत्री ने हिमाचल प्रदेश सरकार के इस अध्यादेश का विरोध करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जिसका विपक्ष ने भी समर्थन दिया और प्रस्ताव सदन में सर्वसम्मति से पारित हुआ।
सदन ने केंद्र सरकार से भी आग्रह किया है कि वह हिमाचल प्रदेश सरकार को यह अध्यादेश वापिस लेने के आदेश दे, क्योंकि यह केंद्रीय अधिनियम यानी अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 का भी उल्लंघन है।
श्री मनोहर लाल ने प्रस्ताव पढ़ते हुए कहा कि इस वॉटर सेस से भागीदार राज्यों पर प्रति वर्ष 1200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा, जिसमें से लगभग 336 करोड़ रुपये का बोझ हरियाणा राज्य पर पड़ेगा। यह सेस न केवल प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य के विशेष अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि बिजली उत्पादन के लिए अतिरिक्त वित्तीय बोझ भी पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप बिजली उत्पादन की लागत भी अधिक होगी।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा जल उपकर लगाना अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के प्रावधान के विरुद्ध है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन परियोजनाओं के माध्यम से हरियाणा राज्य पहले से ही हरियाणा और पंजाब के कम्पोजिट शेयर की 7.19 प्रतिशत बिजली हिमाचल को दे रहा है।इसलिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा इस अध्यादेश को वापिस लिया जाना चाहिए।
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