महाभारत के चक्रव्यूह की याद दिलाता है भारतीय खेल कबड्डी ।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कहा कि भारत ने 2036 में ओलम्पिक खेलों का आयोजन कराने का लक्ष्य रखा है। उसमें कबड्डी को शामिल कराने का प्रयास किया जाएगा। खेलों के क्षेत्र में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था क्रीड़ा भारती ने प्रधानमंत्री के इस लक्ष्य व देश की जनता के इस स्वप्न को एक अभियान के रूप में स्वीकार कर प्रत्येक जिला में कबड्डी की कम से कम 100 टीमें बनाकर प्रतियोगिता कराने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है। जिससे पूरे देश में कबड्डी के लिए एक वातावरण बनाया जा सके।
कबड्डी का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी जड़ें प्राचीन भारत में खोजी जा सकती हैं। इसे एक पारंपरिक खेल माना जाता है जो 5000 साल से भी अधिक समय से खेला जा रहा है। महाकाव्य महाभारत में भी कबड्डी का उल्लेख मिलता है, जो भारतीय जीवन में इसके दीर्घकालिक महत्व को दर्शाता है। इसे भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन और आत्मरक्षा के साधन के रूप में विकसित किया गया था। कबड्डी का उद्भव प्राचीन भारत में हुआ माना जाता है, महाभारत जैसे कुछ ऐतिहासिक ग्रंथों में कबड्डी जैसे खेलों का वर्णन मिलता है। जहां अर्जुन की कौशल और युद्ध रणनीति को कबड्डी के खेल से जोड़ा गया है। प्राचीन ग्रंथों और लोककथाओं में भगवान कृष्ण के बचपन में कबड्डी खेलने का उल्लेख भी मिलता है। मान्यता है कि पांडवों को घेरने के लिए गुरु द्रोण ने जो चक्रव्यूह की रचना की थी उसके अंतिम द्वार में साथ महारथियों का आक्रमण दल था जिसमें वीर अभिमन्यु को घेर लिया गया। अभिमन्यु के चक्रव्यूह को भेदने का पूरा तरीका ही कबड्डी पर आधारित था। चक्रव्यूह की तरह ही कबड्डी में एक तरफ सात खिलाड़ी रखने का नियम भी इसीलिए प्रचलित हुआ कि कैसे साथ महारथियों के दल को चकमा देकर सुरक्षित वापिस आना है। तभी से गुरुकुलों में शिष्यों को कबड्डी सिखाया जाने लगा। इस तरह यह खेल ग्रामीण परिवेश में रोचकता के कारण प्रचलित हो गया।
कुछ राजशाही परिचय ग्रंथों में राज परिवार के बच्चों में जो पकड़-पकड़ाई का मनोरंजन प्राप्त करने के लिए खेल खेला जाता था, कालांतर में वही पकड़-पकड़ाई का खेल कालांतर में दो दलों के मध्य पकड़-पकड़ाई का खेल बन गया और बाद धीरे-धीरे कबड्डी के रूप में परिवर्तित होता गया।
खेलों के विषय में शोध करने वाले कुछ शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि कबड्डी की उत्पत्ति दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हुई थी, जहाँ इसे “काई-पिडी” के नाम से जाना जाता था। इतिहास के अनुसार कबड्डी तमिलनाडु राज्य से आया खेल है। इसका नाम भी तमिल शब्द काइपिडी से बना है, जिसका अर्थ हाथ पकड़े रहना होता है अर्थात् आक्रमण करने वाले प्रतिद्वंद्वी को हाथ पकड़ कर सामूहिक रूप से पकड़ने हेतु सुनियोजित संघर्ष करना । वहीं 1915 से 1920 के बीच कबड्डी को खेलों के रूप में लोकप्रिय बनाने का क्रेडिट महाराष्ट्र को दिया जाता है। कबड्डी का इतिहास प्राचीन भारत में अनेकों ढंग से परिचित करवाया गया है, जहाँ इसे मुख्यतः अस्तित्व और आत्मरक्षा का खेल माना जाता था।
कबड्डी भारत के कई हिस्सों में एक लोकप्रिय खेल बन गया, और इसे ग्रामीण क्षेत्रों में बिना किसी विशेष साधनों के खेला जाता रहा है। हरियाणा, पंजाब, पश्चिम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में कबड्डी को जो लोकप्रियता मिली व किसी भी खेल को नहीं मिल पाई। कबड्डी एक लोकप्रिय दो दलों का खेल है, जिसमें कौशल और शक्ति की आवश्यकता होती है, तथा इसमें कुश्ती और रग्बी की विशेषताओं के साथ-साथ बैडमिंटन और तलवारबाजी की पैर की तकनीक का भी मिश्रण होता है। यह एक ऐसा खेल है जो शारीरिक सहनशक्ति और मानसिक तीक्ष्णता जिसे तुरंत बुद्धि कहते है दोनों का समन्वय करता है, और यह भारत और दुनिया भर में एक लोकप्रिय खेल बना हुआ है। 20वीं सदी में, कबड्डी को एक संगठित खेल के रूप में विकसित किया गया। कबड्डी का महत्व केवल खेल तक ही सीमित नहीं है। यह भारतीय संस्कृति के मूल मूल्यों शक्ति, साहस, अनुशासन और एकता का प्रतीक है। यह खेल केवल व्यक्तिगत कौशल का नहीं, बल्कि खिलाड़ियों के बीच टीम वर्क, समझ और विश्वास का भी प्रतीक है। यह भारतीय समाज की उस भावना को दर्शाता है, जहाँ व्यक्ति एकजुट होकर चुनौतियों का सामना करने के लिए एक साथ मिलकर सामना करते हैं। कई ग्रामीण इलाकों में, कबड्डी त्योहारों और सामाजिक समारोहों का एक अभिन्न अंग रहा है। हरियाणा-पंजाब में तो कुश्ती दंगलों की भांति ही कबड्डी भी विभिन्न मेलों का मुख्य आकर्षण रहती थी। यह हरियाणा, पंजाब के अतिरिक्त तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के गाँवों में कहीं ज़्यादा लोकप्रिय है। में कबड्डी को 1990 के एशियाई खेलों में शामिल किया गया, जिससे इस खेल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। वर्तमान में भारतीय उपमहाद्वीप और दुनिया भर में व्यापक रूप से खेला जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि 1936 में कबड्डी ओलम्पिक में शामिल की गई थी। यद्यपि 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में कबड्डी को आधिकारिक तौर पर शामिल नहीं किया गया था। अपितु इसे एक प्रदर्शनी खेल के रूप में प्रदर्शित किया गया था, जिससे इसे वैश्विक मंच पर पहचान मिल सके।
इंटरनेशनल प्रवासी स्पोर्ट्स एसोसिएशन (हिप्सा) वर्ल्ड कबड्डी के सहयोग से सितंबर 2024 में पहली बार ग्लोबल महिला कबड्डी लीग का आयोजन किया गया। इस लीग में 15 से ज़्यादा देशों की महिला एथलीट ने भाग लिया। यह अपनी तरह का पहला टूर्नामेंट था। इसी तरह भारत ने इंग्लैंड के वॉल्वरहैम्प्टन में आयोजित पुरुष और महिला कबड्डी विश्व कप 2025 दोनों पर जीत का परचम लहराया। भारतीय महिला कबड्डी टीम का एशियाई खेलों में भी शानदार प्रदर्शन रहा, जहाँ उन्होंने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता हैं। उनके लगातार प्रदर्शन ने न केवल इस खेल की ओर ध्यान आकर्षित किया है, बल्कि कबड्डी के वैश्वीकरण के प्रयासों को भी बल दिया है, इस उम्मीद के साथ कि शायद इसे एक दिन ओलंपिक में शामिल किया जा सके।
यद्यपि कबड्डी को ओलम्पिक में शामिल कराने की राह इतनी भी आसान नहीं है। अगर किसी खेल की पुरुष टीम को ओलम्पिक में शामिल किया जाना है, तो वह खेल कम से कम 75 देशों में खेला जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त महिला कैटेगरी में हो तो 40 देशो में खेला जाना चाहिए। इतने देशों में उस खेल का अस्तित्व होने से ही ओलम्पिक में शामिल होने के योग्य माना जाता है। इसके अतिरिक्त एक शर्त यह भी है कि खेल शारीरिक होना चाहिए। इसमें किसी मशीन और उपकरण की मदद नहीं लेनी चाहिए। इस शर्त की योग्यता तो कबड्डी रखता है। चेस और कार रेसिंग जैसे खेलों पर यह नियम लागू हो जाता है। इसके अलावा ओलम्पिक सेशन की मंजूरी भी होनी चाहिए, जो किसी नए खेल को शामिल करने के लिए ओलम्पिक कार्यकारी बोर्ड समिति की सिफारिश के आधार पर होती है। भारत सरकार इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही योजनाबद्ध प्रयास कर रही है ।
यदि 2036 ओलम्पिक की मेजबानी भारत को मिल जाती है और कबड्डी को ओलंपिक में शामिल किया जाता है, तो भारतीय महिला व पुरुष कबड्डी टीम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने की प्रबल दावेदार हैं। इससे भारत के प्रत्येक जिलों में कबड्डी के मैदान एकबार फिर नन्हें खिलाड़ियों से सरोबार दिखाई देंगे । क्रीड़ा भारती कबड्डी व कबड्डी खेलने वाले खिलाड़ियों के हित के साथ-साथ देश के इस प्राचीन खेल को विश्व व्यापी बनाने के लिए ओलम्पिक में शामिल कराने के सरकार के इस पुनीत प्रयास को सफल बनाने के लिए संकल्पित है।

स्तंभकार :
डॉ उमेश प्रताप वत्स
