“एक सुबह परिवर्तन की ओर”

लेखक:- प्रदीप जागलान ‘बैरागी’
आज की सुबह कुछ खास थी। नरवाना की हवाओं में उम्मीद की सरसराहट थी, मानो सूरज की किरणें भी किसी अद्भुत आयोजन की साक्षी बनने को आतुर थीं। मैं अपने हाथ में संजय भारद्वाज जी द्वारा भेजा गया निमंत्रण पत्र लिए नरवाना के ग्रीनलैंड की ओर बढ़ रहा था, जहाँ “बलबीर चंद्र गुप्त शिक्षक अवार्ड” से संबंधित एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन मानव मित्र मंडल नरवाना द्वारा किया जा रहा था।
मानव मित्र मंडल नरवाना—सिर्फ एक संस्था नहीं, बल्कि समाज में शिक्षा के माध्यम से बदलाव लाने वाली एक चेतना है। एक ऐसा शानदार मंच, जो ज्ञान की लौ से अज्ञानता के अंधकार को दूर कर रहा है। जिनके कार्यों में संवेदनशीलता, सरोकार और संकल्प की झलक साफ देखी जा सकती है।
कार्यक्रम स्थल पर पहुँचते ही एक सुखद अनुभूति हुई। सुनील गोयल , नरेश वत्स ने गर्म जोशी से मेरा स्वागत किया ,यहां का वातावरण ऊर्जावान था—सजावट सादगी में सुंदर, हर ओर आत्मीयता और गरिमा का भाव। यहां उपस्थित हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, जिज्ञासा पूर्ण सब की निगाहें मंच की ओर थी
कार्यक्रम की शुरुआत मधुर संगीत और दीप प्रज्वलन से हुई। मंच पर अनेक शिक्षाविद्, समाजसेवी और विद्यार्थी मौजूद थे। मुख्य आकर्षण था – “बलबीर चंद्र गुप्त शिक्षक अवार्ड” का वितरण। यह अवार्ड केवल एक सम्मान नहीं था, बल्कि उन शिक्षकों के प्रति आभार की एक भावभीनी अभिव्यक्ति थी, जिन्होंने शिक्षा को पेशा नहीं, पूजा समझा।
जैसे ही पुरस्कार विजेता का नाम पुकारा गया, प्रधानाचार्य बलजीत गोयत, यह सुनकर पूरे हॉल में तालियों की गूंज फैल गई। वह क्षण बेहद गौरवपूर्ण था। लोगों की आँखों में सम्मान, गर्व और प्रेरणा के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। कार्यक्रम में वक्ताओं ने बलजीत जी के संघर्षों, समर्पण और शिक्षा-प्रेरणा की कहानियों को बड़े भावपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया। किसी ने कहा, “बलजीत जी वो दीपक हैं, जो खुद जलते हैं ताकि औरों को उजाला दे सकें।” तो किसी ने कहा, “उनका जीवन युवाओं के लिए मार्गदर्शक है।”
बलजीत गोयत जी ने सम्मान ग्रहण करते समय बहुत ही विनम्रता से कहा –
“यह सम्मान मेरा नहीं, मेरे विद्यार्थियों, मेरी टीम और उस विश्वास का है जो समाज ने मुझ पर जताया। मैं वादा करता हूँ, जब तक साँस चलेगी, शिक्षा की लौ जलती रहेगी।”
कार्यक्रम के अंत में मानव मित्र मंडल के पदाधिकारियों ने समाज में शिक्षा की महत्ता और युवा पीढ़ी को सशक्त करने के अपने मिशन को फिर दोहराया। जब मैं वापसी के लिए निकला, तो मेरे मन में कई भाव एक साथ चल रहे थे—गर्व, कृतज्ञता और प्रेरणा। यह केवल एक आयोजन नहीं था, यह एक नई सुबह थी, जो समाज को एक बेहतर दिशा की ओर ले जा रही थी।
यह थी नरवाना की एक सुबह — परिवर्तन की ओर उठाया गया एक सुनहरा कदम।
