दक्ष दर्पण समाचार सेवा dakshdarpan2022@gmail.com कालका
ऐतिहासिक शहर पिंजौर की प्राचीन काल से पांडव कालीन बावडियों के व्यर्थ बह रहे पानी को एक जगह स्टोर कर ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से शुद्ध बनाकर कालका और पिंजोर में सप्लाई किया जा सकता है। विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसने वाले कालका और ऊपरी पिंजोर वासियों के लिए यही पानी लोगों की प्यास बुझा सकता है। लेकिन ना तो सरकार और ना ही प्रशासन ने आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। शिवालिक विकास मंच एवं पूर्व चेयरमैन हरियाणा सरकार विजय बंसल एडवोकेट ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और जल संसाधन प्राधिकरण चेयरमैन को पत्र लिखकर जल क्रांति योजना के तहत पिंजौर के प्राचीन जल स्रोतों को पुनर्जीवित कर उनका उपयोग करने को कहा है।
एडवोकेट विजय बंसल ने बताया कि किसी समय पिंजौर में सैकड़ों बावडिया होती थी जो धीरे-धीरे लुप्त होती चली गई जिनमें से अब केवल 14 बावड़ियां ही शेष बची हैं यदि सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो धीरे-धीरे यह भी लुप्त हो जाएंगी। पुरानी किंवदंतियों के अनुसार पांडवों ने अपने बनवास का 1 वर्ष का अज्ञातवास पिंजौर क्षेत्र में बिताया था कहीं कौरव उनके पानी में जहर ना मिला दें इसलिए वह प्रतिदिन एक नई बावड़ी खोदकर पानी पिया करते थे। 8वीं से 11वीं शताब्दी के प्राचीन पंचायतन मंदिर भीमा देवी के अवशेष भीमा देवी कंपलेक्स में आज भी मौजूद हैं वहां प्राचीन बावड़ी है, दो बावडिया गुरुद्वारा साहिब में, एक धारा मंडल, एक द्रोपदी कुंड, उसके सामने का तालाब, मेन बाजार में गुरुद्वारे के पास दुकानों के पीछे दो बावडिया, बाबा तोपनाथ के डेरे की एक बावड़ी, शिवा कंपलेक्स कबीर चौरा की एक बावड़ी, कुम्हारों वाली बावड़ी, मस्जिद के साथ दो बावडिया, एक बैरागी मोहल्ले की बावड़ी, श्मशान घाट के रास्ते में दरगाह के साथ वाली बावड़ी, एक त्रिवेणी की धार्मिक बावड़ी, कौशल्या नदी की बावड़ी जिससे पिंजोर को पानी सप्लाई किया जाता था, एक बावड़ी श्मशान घाट के अंदर आज भी मौजूद है। किसी समय में पिंजौर वासी इन्ही बावडियों का पानी पीते थे। लेकिन जब से सरकार में ट्यूबवेल से पानी सप्लाई आरंभ की तब से प्रशासन और सरकार इन प्राचीन जल स्रोतों को भूल गई जो आज दयनीय स्थिति में है। सही रखरखाव और सफाई ना होने की वजह से हर वर्ष इनमें सैकड़ों मछलियां भी मर रही हैं। पहले इन बावडियों के लगातार वर्ष भर बहते पानी को कूहलों के माध्यम से मानकपुर और धमाला तक के खेतों की सिंचाई होती थी लेकिन हुडा विभाग द्वारा सेक्टर विकसित करने के उद्देश्य से भूमि अधिग्रहण करने के बाद खेत खत्म हो गए अब इनका पानी व्यर्थ बह रहा है। कुछ बावडियों का पानी पिंजौर के यादवेंद्र गार्डन के फव्वारे चलाने के लिए प्रयोग किया जाता था लेकिन टूरिज्म विभाग ने ट्यूबवेल लगाने के बाद बावड़ी के पानी का प्रयोग करना बंद कर दिया। अब यह पानी गंदे नाले में मिलकर कौशल्या नदी में जा रहा है। कौशल्या नदी में सिंचाई विभाग ने पंचकूला शहर को पानी सप्लाई करने के लिए कौशल्या डैम का निर्माण किया था। इस नदी में पिंजौर के गंदे पानी का नाला और सीआरपीएफ कैंपस के सीवरेज का गंदा पानी भी जा रहा है। जिसे हूडा विभाग पुराने पंचकूला में ट्रीटमेंट प्लांट से शुद्ध कर आगे सप्लाई करता है। जब गंदे पानी को शुद्ध किया जा सकता है तो बावडियों के साफ पानी को भी ट्रीटमेंट प्लांट से पीने योग्य बनाया जा सकता है। सरकार को शीघ्र इस पर कार्यवाही कर प्राचीन जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना चाहिए। यह पानी पिंजौर और कालका शहरों में पेयजल सप्लाई के लिए पर्याप्त रहेगा नहीं तो धीरे-धीरे अन्य बावडियों की तरह इन बावडियों पर भी कब्जे हो जाएंगे और यह पूरी तरह से लुप्त हो जाएंगी। बावडियों के पानी प्रयोग करने से जहां एक और सरकार का ट्यूबवेल खुदाई का खर्चा बचेगा वही बिजली की भी बचत होगी इन बावडियों का पानी 24 घंटे 12 महीने लगातार बहता रहता है इसका सदुपयोग करना चाहिए ना कि इसे बर्बाद करने देना चाहिए।