डीपी वर्मा
दक्ष दर्पण समाचार सेवा
चंडीगढ़।
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन की अभी पुष्टि नहीं हुई है लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यदि यह समझौता हुआ तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान दो लोगों को होगा। एक आम आदमी पार्टी के प्रथम पंक्ति के उन नेताओं को जो अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ना चाहते थे और दूसरे हैं कांग्रेस के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को।
आप समझ सकते हैं कि कल तक जो आम आदमी पार्टी 90 के 90 विधानसभा क्षेत्र में अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रही थी वह अब मात्र 5 सीटों पर संतुष्ट होकर कांग्रेस के समक्ष समर्पण करने को विवश हो गई है। अभी तो इसी आप ट्रेलर कह सकते हैं चुनाव अभी बाकी है जो कुरुक्षेत्र में हुआ वह इन पांच सीटों पर भी हो गया तो फिर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा करने वाले आम आदमी पार्टी के नेता क्या करेंगे।
हरियाणा भर में 40 से अधिक ऐसे नेता हैं जो विभिन्न विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ही बनकर नहीं चल रहे थे बल्कि इन सब ने चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया था। लाखों रुपए खर्च भी कर चुके थे लेकिन एक लाइन के प्रस्ताव ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया है ।यढह सब नेता जहां जीत के के सपने देख रहे थे वहीं इस चुनाव को अपने राजनीतिक उद्धव के रूप में देख रहे थे। देखा जाए तो यह प्रस्ताव उनके सपनों की भ्रूण हत्या जैसा है।
पता चला है कि आम आदमी पार्टी के लिए जींद, गुहला चीका पेहवा कलायत और पानीपत ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र मतलब केवल पांच सिम छोड़ी जा रही है। जबकि मांग 10 सीटों की बताई गई थी। कुछ और दबाव पड़ा तो कांग्रेस आम आदमी पार्टी को 7 सीट देकर निपटा देगी। ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी के मुट्ठी भर नेताओं ने अपनी अपेक्षाओं पर कुछ इस तरह से समझौता करने की ठान ली है कि पार्टी और प्रथम पंक्ति के नेता आगे चाहे कुछ करें उनकी मर्जी। शायद आम आदमी पार्टी के नेताओं को लगता है कि कांग्रेस की सरकार आ रही है और आम आदमी पार्टी उसमें उसी तरह हिस्सेदार हो जाएगी जैसे भाजपा सरकार में जेजेपी हुआ करती। हो सकता है दुष्यंत चौटाला की जगह डॉक्टर सुशील गुप्ता को मिलती हो। इन नेताओं का यह भी मानना होगा कि पार्टी के कार्यकर्ता और नेता सरकार के सुख के लालच में पार्टी में ही बने रहेंगे ।अब देखते हैं उनका मानना और सोचना सही है या गलत।
इस तथाकथित समझौते से एक बार फिर रणदीप सिंह सुरजेवाला के हितों पर सीधा कुठाराघात होता दिख रहा है। वह इसे कैसे बर्दाश्त करेंगे यह भी समय बताएगा।सुरजेवाला को लोकसभा के चुनाव में लोकसभा की एक सीट कुरुक्षेत्र मिल सकती थी जहां से वे अपने किसी समर्थक को टिकट दिलवा सकते थे लेकिन इंडिया गठबंधन के नाम पर आम आदमी पार्टी को कुरुक्षेत्र सीट देकर जहां सुरजेवाला को बैक फुट पर लाकर खड़ा कर दिया गया वहीं डॉक्टर सुशील गुप्ता भी जीत का मुंह ताकते रह गए। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं ,समझौते में जिन सीटों को आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ने की बात की जा रही है उनमें ज्यादातर वही है जहां सुरजेवाला के समर्थक टिकट की एड़ी उठा उठा कर इंतजार कर रहे थे। वह चाहे पेहवा हो जहां सुरजेवाला समर्थक संदीप ओंकार एक मजबूत उम्मीदवार हैं ,वह चाहे कलायत हो जहां रणदीप सिंह सुरजेवाला समर्थक श्वेता ढुल चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है चाहे वह गुहला चीका हो जो कैथल के उस जिले का हिस्सा है जहां से सुरजेवाला चुनाव लड़ते हैं। इसके अलावा जींद भी रणदीप सिंह सुरजेवाला का गृह जिला है और वह जींद से उपचुनाव भी लड़ चुके हैं।
कुल मिलाकर कांग्रेस के जिस भी नेता ने यह काम किया है उसने कांग्रेस में ही अपने विरोधियों पर धीरे से जोर का झटका देने में कामयाबी हासिल कर ली है लेकिन इससे आम आदमी पार्टी की स्थिति यह हो जाएगी कि उसका कोई नाम लेवा नहीं बचेगा, ऐसा वह सब लोग मानते हैं जो हरियाणा की राजनीति को जानते हैं।