यदि प्रधान ही गया हार तो फिर कैसे पड़ेगी पार !

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धर्मपाल वर्मा

दक्ष दर्पण समाचार सेवा dakshdarpan2022@gmail.com चण्डीगढ़ देश की विश्वसनीय एजेंसी इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी, सोनीपत, कुरूक्षेत्र और अंबाला में नये चेहरे देने पर विचार कर रही है। जाहिर है पार्टी ने फीडबैक के आधार पर यह फैसला लिया होगा ।आईबी ने वही बताया है जो भाजपा के विचार में है। इस मामले में यदि हम सबसे पहले कुरुक्षेत्र का जिक्र करें तो वाजिब होगा। क्योंकि इस लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सीटिंग एमपी और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी को उम्मीदवार बनाया जा रहा है ।उनके पक्ष में सिंगल नाम का पैनल भेजे जाने की सूचना है। यदि इस समय नायब सैनी को कुरुक्षेत्र से एक बार फिर चुनाव लड़ाने की योजना है तो इसके पीछे कहीं ना कहीं मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी हैं ।वह भी चाहते हैं कि नायब सैनी ही कुरुक्षेत्र से उम्मीदवार हो ।देखा जाए तो हरियाणा के मौजूदा 10 भाजपा सांसदों में नायब सैनी को संजय भाटिया की तरह मुख्यमंत्री का सबसे करीबी और विश्वास पात्र माना जाता है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री उन्हें एक बार फिर सांसद देखना चाहते हैं। लेकिन यदि आज की स्थिति का जायजा लिया जाए तो जीत के लिए भाजपा को कुरुक्षेत्र से उम्मीदवार बदलना पड़ेगा ।इसके कई कारण है एक कारण तो यह है कि नायब सैनी को लेकर यह माना जा रहा है कि उनकी भी जनता से दूरी बनी रही है जो किसी भी उम्मीदवार के लिए खतरनाक धारणा है ।
इस समय कुरुक्षेत्र में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के जो सांझा उम्मीदवार डॉ सुशील गुप्ता चुनाव लड़ रहे हैं उन्होंने आते ही नायब सैनी की पहली कमजोरी ढूंढ कर उन्हें एक्सपोज करने की कोशिश की है ।उनका एक वाक्य नायब सैनी की एक कमजोरी को साबित करने का काम कर रहा है ।विरोधी उम्मीदवार ने चुनाव के लिए कुरुक्षेत्र आते ही कहा भाजपा सांसद का नाम गायब सैनी है न कि नायब सैनी। जाहिर है उन्हें इनकंबेंसी फैक्टर का भी सामना करना पड़ रहा होगा । नायब सैनी को लेकर आमतौर पर यह चर्चा की जाती है कि जनाधार के मामले में वह कमजोर व्यक्ति हैं ।उनकी पत्नी का अंबाला के एक वार्ड से जिला परिषद चुनाव लड़ना और चौथे नंबर पर आना भी उनकी प्रतिष्ठा और जनाधार से जोड़कर देखा जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को इस तथ्य को भी नजरंदाज‌ नही करना चाहिए कि प्रदेश अध्यक्ष को चुनाव लड़ाने की गलती कई बार बड़ी गलती साबित हो जाती है। यह गलती भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में भी की थी जब केंद्र में मंत्री और पंजाब भाजपा के अध्यक्ष विजय सांपला अध्यक्ष रहते चुनाव लड़ें और हार गए थे। असल में प्रदेश अध्यक्ष का काम चुनाव लड़ना नहीं चुनाव लड़ाना होता है ।नायब सैनी पर एक तो जनता से दूरी बनाने का आरोप लग रहा है दूसरे में चुनाव में पूरे हरियाणा की दसों सीटों पर प्रचार में लगे रहना पड़ेगा तो यह उनकी दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो जाएगी और इसका नुकसान सभी 10 सीटों पर इसलिए हो जाएगा कि विरोधी एक बात का ही प्रचार छेड़ देंगे कि पार्टी का प्रधान ही चुनाव में फंसा हुआ है। इस समय भी कुरुक्षेत्र में आम आदमी पार्टी का प्रचार नियोजित तरीके से चल रहा है इसे भारतीय जनता पार्टी को समझ लेना चाहिए हैरानी की बात तो यह भी है कि नायब सैनी के स्थान पर जिस महिला उम्मीदवार का नाम उछाला जा रहा है वह है कैलाश सैनी ।उनके बारे में कुरुक्षेत्र में ही यह प्रचार है कि वह नायब सैनी से भी कमजोर उम्मीदवार है। उसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं क्योंकि वे लोक दल और वाया कांग्रेस भाजपा में आई हैं। विधानसभा तक का चुनाव हार चुकी हैं। ऐसा माना जा रहा है कि कुछ लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति में नायब सैनी की जगह कैलाशो सैनी का नाम आगे कर रहे हैं। इस क्षेत्र के लोग कैलाशो सैनी को तो किसी तरह से भी उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मानते। हैं। भाजपा को कुरुक्षेत्र में पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारित शपथ छवि के किसी कार्यकर्ता को आगे लाना चाहिए।
सोनीपत में मौजूदा सांसद रमेश चंद्र कौशिक को लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ानें की बातें काफी समय से चल रही है और यदि आई बी ने भी इस बात पर मोहर लगाई है तो अब यह संभावना बन रही है कि बेशक उम्मीदवार ब्राह्मण ही हो परंतु नया जरूर होना चाहिए। ऐसे में राई के विधायक मोहनलाल बडोली के नाम पर भी विचार संभव है। इसके अलावा ओलंपियन योगेश्वर दत्त के नाम पर भी निर्णय हो सकता है 2 दिन से योगेश्वर का नाम चर्चा में है। भारतीय जनता पार्टी के नेता ऐसा मानते हैं कि सोनीपत भाजपा की परंपरागत सीट है और यहां जाट उम्मीदवार भी जीत सकता है। इस संदर्भ में पूर्व मंत्री कृष्णा गहलोत और जय सिंह ठेकेदार के नाम पर भी विचार हुआ है।
अंत में अंबाला की बात करें तो स्वाभाविक है कि पूर्व सांसद रतनलाल कटारिया के निधन के बाद रिक्त हुई इस सीट पर उम्मीदवार तो नया ही आएगा लेकिन आमतौर पर चर्चा इस बात की है कि पार्टी बंतो कटारिया के नाम पर ही दाव खेलने वाली है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को दो बात समझ लेनी चाहिए कि रतनलाल कटारिया और बंतो कटारिया की सोच और अनुभव में दिन-रात का फर्क है। जानकार कहते हैं कि बंतो को उम्मीदवार बनाया गया तो सारा चुनाव पार्टी को अपने दम पर ही लड़ना पड़ेगा। पार्टी को अंबाला का उम्मीदवार तय करने के लिए हर पक्ष पर मंथन करने की जरूरत है। यदि अंबाला की सीट भी लूज करने की चर्चा भी हुई तो इसका असर भी 10 की 10 लोकसभा सीटों पर जाएगा।

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