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कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में पत्नी पर मां-बाप से अलग होने का दबाव बनाने को क्रूरता बताते हुए कहा है कि
अदालत एक महिला की अपील पर सुनवाई कर रही थी. महिला ने परिवार अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे अपने पति को तलाक देना था. हाई कोर्ट ने महिला की अपील को यह कहकर खारिज कर दिया कि अपने पति को उसके माता-पिता और परिवार से अलग करने का प्रयास क्रूरता के बराबर था. अभियोग के मुताबिक, महिला, अपने पति पर दबाव बना रही थी कि वह अपने मां-बाप को छोड़ दे और वह दोनों पति-पत्नी कहीं अलग रहने लगे.
मां-बाप का ध्यान रखना, बेटे की जिम्मेदारी: हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने अपने फैसले को विस्तृत तौर पर बताते हुए कहा कि अगर पत्नी मानसिक रूप से अत्याचार करती है, प्रताड़ित करती है. साथ ही बिना कोई ठोस वजह बताए पति को पैरेंट्स से अलग रहने के लिए मजबूर करती है तो ऐसे में पति को पत्नी से तलाक लेने का हक है. असल में परिवार अदालत ने पति की तलाक की याचिका मंजूर कर ली थी, लेकिन महिला ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. मामले में फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने कहा कि एक बेटे की जिम्मेदारी है कि वो अपने मां-बाप का ध्यान रखे. अदालत ने यह भी कहा कि भारत में शादी के बाद भी एक बेटे का अपने मां- बाप के साथ रहना एक सामान्य बात है, और उनसे अलग होकर रहना आम बात नहीं है.
पति-पत्नी की ये कानूनी लड़ाई साल 2009 से शुरू हुई थी. तब पश्चिमी मिदनापुर की एक परिवार अदालत ने पति को पत्नी की क्रूरता के आधार पर तलाक लेने की मंजूरी दे दी थी. इन दोनों की शादी साल 2001 में हुई थी. पति का आरोप था कि पत्नी से उसे खुले तौर पर जलील करती है और उसे कायर, निकम्मा और बेरोजगार कहती थी. पति पेशे से एक टीचर था और घर चलाने लायक पैसे नहीं कमा पाता था. परिवार में बच्चों के अलावा पति के मां-बाप भी रहते हैं. पत्नी यह भी जिद करती रही थी कि पति एक फ्लैट अलग से किराए पर ले ले. वहीं जब एक बार पति की सरकारी नौकरी लगने ही वाली थी, तभी पत्नी ने पति के खिलाफ प्रताड़ित करने वाला आपराधिक मामला दर्ज करा दिया, इस केस की वजह से पति की सरकारी नौकरी नहीं लग सकी थी.