जज पर टिप्पीण पर बुरे फंसे मनोहर, हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला-हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट ने की शिकायत, आपराधिक अवमानना कार्रवाई करने की मांग

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डीपी वर्मा

दक्ष दर्पण समाचार सेवा
हिसार, 04 अप्रैल।
दो दिन पूर्व भिवानी जिले के खरक कलां गांव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणी अब उनके लिए गले की फांस साबित हो सकती है। पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी एवं हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट के प्रदेश चेयरमैन एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने इस मामले में हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट को शिकायत भेजकर मुख्यमंत्री के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की है।
माननीय हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट को भेजी शिकायत में उन्होंने कहा कि हम भी वकील है जो कि ऑफिसर ऑफ दी कोर्ट होता है, इस वजह से हमे भी पीड़ा हुई है जो गत दो अप्रैल को भिवानी जिले के खरक कलां गांव में सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने यह कहकर अदालत की आपराधिक अवमानना की थी कि एक जज है, उसके माथे में कुछ गड़बड़ है। ठीक करेंगे उसको। यानी एक न्यायाधीश हैं जिन्हें समस्या है, हम उन्हें ठीक कर देंगे। मुख्यमंत्री का यह बयान यह विभिन्न समाचार पत्रों और मीडिया के माध्यम से भी प्रकाशित हुआ हैऔर लगातर सोशल मीडिया पर ये खबर वायरल हो रही है। उक्त वक्तव्य राज्य पुलिस में कांस्टेबलों के चयनध्नियुक्ति पर रोक लगाने के संदर्भ में दिया गया था।
उन्होंने कहा कि इस तरह का बयान न्यायिक अधिकारी, वह भी माननीय उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश के लिए सीधा खतरा है और सीधे तौर पर यह अदालत की आपराधिक अवमानना है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के सम्मान और गरिमा को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक मंच पर ऐसे बयान देने वाले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए।
बॉक्स-बाबुल सुप्रीमो बनाम पश्चिम बंगाल के फैसले का दिया हवाला
अपनी शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री न्यायपालिका के कामकाज में सीधे तौर पर हस्तक्षेप कर रहे हैं और उन्हें निवारक सजा दी जानी चाहिए जो माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की गरिमा के लिए एक उदाहरण स्थापित करेगा। उन्होंने इस संबंध में इसी तरह के मामले में दिए गए एक फैसले को बाबुल सुप्रियो बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में 14 अक्टूबर 2020 में यह माना गया है कि लोगों के प्रतिनिधियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने व्यवहार में विनम्र, अपने शिष्टाचार में गरिमापूर्ण और उनके द्वारा बोले गए शब्दों पर सतर्क रहें। उन्होंने मांग की कि इस मामले में भी अवमाननाकर्ताओं के खिलाफ आवश्यक कार्यवाही शुरू की जाए और न्याय के हित में कड़ी सजा दी जाए और अवमाननाकर्ता को एक सबक दिया जाए जो दूसरों के लिए इस तरह के तिरस्कारपूर्ण शब्द न बोलने के लिए एक उदाहरण साबित हो।

हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट को भेजी गई शिकायत की प्रतिलिपि

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