भारतीय संस्कृति की पहचान: भगवान श्री राम

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दक्ष दर्पण समाचार सेवा dakshdarpan2022@gmail.com

रायपुररानी      नन्द सिंगला

श्री राम भगवान विष्णु के सातवें

 अवतार माने जाते हैं, जो तत्कालीन समाज में बढ़ते हुए असुर अत्याचारों व आताताईयों की क्रुरता से आक्रांत मानवमात्र की भलाई केरूर लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाईयों तथा कष्टों का उन्होने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मुल्यों का संरक्षण किया जा सके तथा दुष्टों को उनकी दुष्टता के लिए दंडित किया जा सके।

राम को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता है। गोस्वामी तुलसी दास जी ने अपनी कालजयी रचना श्रीरामचरितमानस में श्री राम को क्रमश: आदर्श पुरूष, भाई, पुत्र, पति, मित्र, तथा आदर्श राजा माना है, राम एक सत पुरूष हैं, सदैव सत्य और धर्म के अनुयाई। वह अपने मन भावन गुण में चंद्रमा के समान हैं, उनमें दया, क्षमाशीलता, स्नेह, प्रेम, व मानवता की स्वाभाविक प्रवित्तियाँ हैं, मानव मात्र के कल्याण हेतु कभी वे उदार ह्रदय व कोमल हो जाते हैं तो कभी दुष्टों का संहार करने के लिए काल स्वरूप हो जाते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार श्री राम नाम के दो अक्षरों में ‘रा’ तथा ‘म’ ताली की आवाज़ की तरह हैं जो संदेह रूपी पक्षियों को हमसे दूर ले जाते हैं। ये हमें ईश्वरीय शक्ति के प्रति विश्वास से ओत प्रोत कराते हैं। जो अंर्तमन में ब्रह्नात्व को जगाते हैं वे ही श्री साम हैं।

अगर राम ग्रंथों पर एक बृहद दृष्टि डाली जाए तो पूर्व में ‘कृतिवास रामायण’ महाराष्ट में भावार्थ रामायण चलती है, हिंदी व अवधी में तुलसीदासकृत रामचरित मानस ने जन – जन के ह्रदय में विशेष स्थान बनाया हुआ है, दक्षिण में महर्षि कंबन द्वारा रचित ‘ कंब’  रामायण है तो वहीं उत्तर में ‘चकबस्त’ द्वारा लिखित ‘रामायण का एक सीन’ है, इसी प्रकार अनेकों हिंदी व अन्य भाषाओं के कवियों ने अपने काव्य का आधार श्री राम को बनाया है जिनमें मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित ‘साकेत’ व नरेश मेहता द्वारा रचित ‘ पर्वाद पर्व’ है। स्वयं गो स्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं– 

नाना भाँति राम अवतारा

रामायण सत कोटि अपारा।।

सिक्खों के दसवें गुरू श्री गुरूगोविंद सिंह जी ने भी राम कथा लिखी है, “राम अवतार कथनम” को उन्होने साठ शीर्षकों के अंतर्गत रचा है, जिसकी छठवीं पदावली में वे इसे बीन कथा कहते हैं–” थोरिये बीन कथा’ बलि त्वै उपजी बुध मद्धि जथा” ।

पंडित ब्रज नारायण चकबस्त की उर्दु में लिखी” रामायण का एक सीन” एक लंबी नज़म है जिसमें वनवास में जाने से पहले राम अपनी माँ से मिलने जाते हैं जब माँ कोश्लया राम के वन गमन की बात सुनती है तो कहती है-

सरज़द हुए थे मुझसे खुदा जाने क्या गुनहा,

मँझदार में जो यूँ मिरी कशती हुई तबहा।

माँ की दु:ख भरी वाणी सुनकर राम साधारण मानव की तरह माँ के दु:ख से दु:खी हो जाते हैं और उनके दु:ख का आलम देखिए–

सुनकर जंबा से माँ की यह फरियाद दर्द खेज,

उस खस्ता जाँ के दिल पे गम की तेगे-तेज़।

इसी प्रकार वाल्मिकी जी द्वारा रचित रामायण प्राचीन भारत के इतिहास में साहित्य की सबसे महान कृतियों में से एक है, यह समय की कसौटी पर खरी उतरी और अभी भी सभी पीढ़ियों के सब समीक्षकों द्वारा प्रशंसित कार्यों में से एक है।

वाल्मिकी रामायण के अनुसार राम को विष्णु का अवतार माना गया है,विष्णु तीन सबसे महत्वपूर्ण हिंदु देवताओं में से एक है, ब्रह्मा निर्माता, विष्णु रक्षक, और शिव संहारक। विष्णु के विभिन्न प्राणियों के रूप में पृथ्वी पह नौ अवतार हुए हैं।

वास्तव में सबके आराध्य भगवान श्री राम केवल सनातन धर्म के नही बल्कि 

भारतीय संस्कृति की पहचान हैं, भगवान राम को मानव रूप में पूजे जाने वाले सबसे पुराने देवता के रूप में जाना जाता है। भगवान राम ने हमारे लिए उचित मार्ग के आदर्श प्रस्तुत किए हैं, हमें जीवन में भगवान राम के महान आदर्शों और उनके आचरण को महान आदर्शों और उनके आचरण को अपनाना चाहिए, तभी हम राम राज्य की कल्पना को साकार कस सकेंगे।।

ड़ाॅ विनोद शर्मा

निर्देशक श्री राम लीला कमेटी

रायपुर रानी पंचकूला।

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